औद्योगिक युग की एकल परिवार प्रणाली ने बुजुर्गों को पूरी तरह अप्रासंगिक और हाशियानशीं बना दिया है. अब उनकी जगह घर में नहीं बल्कि ओल्ड एज होम में रह गयी है. उनकी उपस्थिति परिवार के लोगों की आजादी में खलल डालने लगी है. अब वे सामाजिक मूल्यों, संस्कारों और अनुशासन की त्रिवेणी नहीं रहे. उनके अनुभवों की न कोई कद्र रही न जरूरत. कबीला युग से लेकर कृषि युग की संयुक्त परिवार प्रणाली तक घर के बुजुर्ग परिवार के मुखिया की हैसियत रखते थे और समाज में उन्हें सभ्यता और संस्कृति की धूरी माना जाता था. उनके निर्णय पर कोई सवालिया निशान नहीं खड़ा कर सकता था. वे नई पीढ़ी में संस्कार का संचार करते थे. सामाजिक मूल्यों को स्थापित करते थे. आधुनिक युग ने चरित्र निर्माण की इस संस्था को कमजोर कर दिया है. पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वाध प्रवाहित होती आ रही सभ्यता-संस्कृति की इस धारा को बांध दिया गया है. आज वे घर के मुखिया नहीं सीनियर सिटिजन बन चुके हैं. उन्हें कुछ सरकारी रियायतें जरूर मिली हैं लेकिन उनके जीवन के अनुभवों की कोई पूछ नहीं. हां कुछ अपवाद भी हैं. यदि उन्होंने जीवन में अगर कुछ ऐसा कौशल विकसित किया जिसके जरिये जीवन पर्यंत अपना सामाजिक रुतबा बनाये रख पाते हैं या अर्थोपार्जन करते रहते हैं और बच्चों के जीने के तौर-तरीकों में दखल नहीं देते तो उन्हें किसी तरह बर्दाश्त कर लिया जाता है. मसलन डाक्टर, वकील, नेता आदि. व्यवसायी भी कुछ हद तक अपनी उपयोगिता बनाये रखते हैं. लेकिन सबसे बुरी स्थिति नौकरी-पेशा लोगों की रिटायर्मेंट के बाद होती है. कहते हैं कि आने वाले दिनों में दुनिया की आबादी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी सीनियर सिटीजंस की होगी इसलिए उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जाना और औद्योगिक युग में उनकी भूमिका की पड़ताल करनी जरूरी है.
Author: Bennie Naude IT'S AN EASY MISTAKE TO MAKE If you experience depression then you know you can't just snap out of it. Especially if you've tried different techniques or been on anti-depressants or in counselling for a long time it's easy to think that you've tried everything or that nothing will help. If you experience depression or know someone who does, don't give up hope before you've read this article and contacted me. COMMON SYMPTOMS OF DEPRESSION You feel sad or cry a lot, get irritated often and overreact, or you feel ‘nothing' a lot of the time. You feel guilty for no real reason; you feel like you're no good; you've lost your confidence. Life seems meaningless or like nothing good is ever going to happen again. You don't feel like doing a lot of the things you used to like and you mostly want to be left alone. It's hard to make up your mind. You forget lots of things, and it's hard to concentrate. You slee...
Kisi bhi vishay ki full story to aati hi nahi. Aise blog ka kya fayda
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